अनिल चन्दोला
देहरादून। उत्तराखंड में अफसरशाही किस कदर हावी और बेलगाम है, इसकी बानगी शुक्रवार को फिर देखने को मिली है। उत्तराखंड में अफसर आम जनता छोड़िये मंत्री-विधायकों तक को भाव नहीं दे रहे हैं। विधानसभा पीठ के स्तर से कई बार निर्देश मिलने के बावजूद अफसरों के रवैये में बदलाव नहीं आ रहा है। मजबूर होकर अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को मुख्य सचिव राधा रतूड़ी को पत्र लिखना पड़ा है। उन्होंने पत्र लिखकर प्रोटोकॉल की एसओपी जारी करने के निर्देश दिए हैं। हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब इस तरह के निर्देश जारी किए गए हैं। इससे पहले कई बार इस तरह की रस्म अदायगी हो चुकी है, जिसका नतीजा शून्य ही रहा है।
ताजा मामला धर्मपुर से भाजपा विधायक विनोद चमोली से जुड़ा है। राज्य स्थापना दिवस कार्यक्रम में शहर विधायक होने के बावजूद अधिकारियों ने उन्हें मंच पर स्थान नहीं दिया, जिससे वह नाराज हो गए। उपेक्षा से नाराज विधायक चमोली ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मिलकर मामले में कार्रवाई करने का अनुरोध किया। मुख्यमंत्री धामी ने भी चिट्ठी लिखकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। इस मामले में कुछ होगा, यह कह पाना बेहद मुश्किल है। क्योंकि इससे पहले कई बार इस तरह की फॉर्मेलिटी की जा चुकी है, लेकिन अधिकारियों का रवैया नहीं बदला। खास बात ये भी है कि पूर्व में जिन अधिकारियों ने इस तरह का व्यवहार किया, उनके खिलाफ कोई कार्रवाई आज तक नहीं की गई है। इससे भी अधिकारियों के हौसले बुलंद होने स्वाभाविक है। वहीं, विधायक खुद को “बेचारा” महसूस कर रहे हैं।
आपको बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान कब-कब विधायकों को अधिकारियों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ा है। उनकी शिकायत पर क्या कुछ हुआ। विधायक उपेक्षा से परेशान होकर विधानसभा में विशेषाधिकार का मामला तक उठा चुके हैं लेकिन उसके बावजूद कुछ नहीं हुआ। चलिये जानते हैं पिछले कुछ चर्चित मामलों के बारे में…
7-8 सितंबर 2023 को कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और चकराता विधायक प्रीतम सिंह ने भी विशेषाधिकार हनन का मामला उठाया था। उन्होंने कहा कि अधिकारी विधायकों के फोन तक नहीं उठा रहे हैं। इस पर विधानसभा अध्यक्ष ऋतु भूषण खंडूड़ी ने तत्कालीन मुख्य सचिव एसएस संधू को तलब कर सभी अधिकारियों को प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए निर्देशित किया था। यही नहीं, उन्होंने अफसरों को ट्रेनिंग देने वाले मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (एलबीएसएनए) सहित अन्य संस्थानों को पत्र लिखने की बात कही। उन्होंने कहा कि वह अपने प्रशिक्षण कार्यक्रम में माननीयों के प्रोटोकॉल को शामिल करने को भी कहेंगीं।
उससे पहले 6-7 सितंबर 2023 को किच्छा के कांग्रेस विधायक तिलक राज बेहड़ और हल्द्वानी के कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश ने विधानसभा में विशेषाधिकार हनन का मामला उठाया था। तब पीठ ने सख्त आदेश देते हुए अधिकारियों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे। अधिकारियों को फोन उठाने पर माननीय विधायक जी कहकर संबोधित करने के निर्देश दिए गए। तब पीठ ने कहा था कि सरकार मुख्य सचिव को निर्देशित करें कि वह सभी जिलों के अधिकारियों तक यह संदेश पहुंचाएं। उससे पहले भी पीठ इस तरह के निर्देश जारी कर जनप्रतिनिधियों के प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए कह चुकी थी।
16-17 मार्च 2023 को जसपुर के कांग्रेस विधायक आदेश चौहान ने विशेषाधिकार हनन का मामला उठाया। साथ ही उन्होंने अधिकारियों पर सदन को गुमराह करने का आरोप भी लगाया। इस पर विधानसभा अध्यक्ष ऋतु भूषण खंडूड़ी ने मामले की जांच कराने के आदेश दिए। तब भी पीठ ने अधिकारियों को प्रोटोकॉल का पालन करने करने के निर्देश दिए थे।
उससे पहले 28-29 नवंबर 2022 को भी उन्होंने विशेषाधिकार हनन का मामला उठाया था। साथ ही ऊधमसिंह नगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पर व्यक्तिगत रंजिश रखने का आरोप लगाते हुए आत्मदाह करने की चेतावनी तक दी थी। तब पीठ ने विषय को बेहद गंभीर मानते हुए सरकार को मामले की जांच के निर्देश दिए थे।
6 मार्च 2021 को किच्छा के तत्कालीन भाजपा विधायक राजेश शुक्ला ने विशेषाधिकार हनन का मामला उठाया था। उन्होंने भी अधिकारियों पर प्रोटोकॉल का पालन न करने और जानबूझकर उपेक्षा करने का आरोप लगाया था। तब पक्ष-विपक्ष के सभी विधायकों ने उनका समर्थन किया था और पीठ ने इस संबंध में निर्देश जारी किए थे।
माना जा सकता है कि इनमें से ज्यादा मामले कांग्रेस विधायकों से जुड़े हुए थे लेकिन निर्वाचित जनप्रतिनिधि होने के नाते वह सभी भी उसी सम्मान और प्रोटोकॉल के हकदार हैं, जितना सतापक्ष के विधायक। हालांकि इससे पहले सतापक्ष के विधायकों से जुड़े जिन मामलों की भी शिकायत हुई, उनमें भी कुछ नहीं हुआ।