देहरादून। इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है कि जिस जनता की गाढ़ी कमाई से सरकार ने दिल्ली में उत्तराखंड सदन का निर्माण किया है, उसी जनता की इसमें एंट्री नहीं रखी गई है। सरकार ने इसमें आम आदमी की एंट्री पूरी तरह बैन कर रखी है। यहां की सुख-सुविधाओं का लाभ केवल सरकार और उनके नुमाइंदे ही उठा सकेंगे। जिस जनता के पैसे से इसको बनाया गया है, वह केवल बाहर से ही इसके दीदार कर पाएगी।
राज्य संपत्ति विभाग ने यहां अलग-अलग कैटेगरी के सरकारी नुमाइंदों के लिए किराये की दरें निर्धारित की है। इसके अनुसार, उत्तराखंड सदन में केवल नेता और सरकारी अधिकारी ही ठहर सकेंगे। यहां केवल राज्यपाल, मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, मंत्री, नेता प्रतिपक्ष, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, सांसद, विधायक, दायित्वधारी, पूर्व मुख्यमंत्री, एडवोकेट जनरल, राष्ट्रीय या राज्य स्तर के दर्जा प्राप्त राजनीतिक दलों के प्रदेश अध्यक्ष, विभिन्न संवैधानिक आयोगों के अध्यक्ष, मेयर, जिला पंचायत अध्यक्ष, मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, सचिव, पुलिस महानिदेशक, अपर पुलिस महानिदेशक, पुलिस महानिरीक्षक, प्रमुख वन संरक्षक, मुख्य वन संरक्षक, राज्य के मुख्य स्थायी अधिवक्ता, 13-ए ग्रेड लेवल या उच्च वेतन के अधिकारी ही ठहर सकेंगे। आम आदमी ही नहीं, शासन के अपर सचिव स्तर के अधिकारियों को भी यहां ठहरने की सुविधा नहीं मिलेगी।
ठहरने के साथ ही यहां बैठकों का आयोजन भी किया जा सकेगा। उत्तराखंड शासन और सरकारी विभागों की बैठक निशुल्क होगी। वहीं, निगमों व समितियों को बैठक के लिए 15 हजार रुपये प्रति दिन प्रति कार्यक्रम देने होंगे। उनके अलावा अन्य को बैठक के लिए 35 हजार रुपये प्रति दिन किराया देना होगा।
यह आदेश जारी होने के बाद से ही लोग इस पर सवाल उठा रहे हैं। सोशल मीडिया पर इसको लेकर लोग अपना विरोध जता रहे हैं। लोगों का तर्क है कि जिस जनता से प्राप्त टैक्स की कमाई से इस भवन का निर्माण किया गया है, उन्हें ही बाहर रखना ठीक नहीं है। लोग सरकार की नीतियों और नीति-नियंताओं की सोच पर भी सवाल उठा रहे हैं। विरोध के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस आदेश को संशोधित करने और आम आदमी को भी सुविधा देने के निर्देश दिए हैं।