भारतीय विदेश के नीति के लिए बढ़ रही चुनौतियां, क्या दक्षिण एशिया में घट रहा हमारा प्रभाव?

भारतीय विदेश के नीति के लिए बढ़ रही चुनौतियां, क्या दक्षिण एशिया में घट रहा हमारा प्रभाव?

दक्षिण एशिया में एक के बाद दूसरे देश भारतीय चिंताओं को नजरअंदाज कर चीन के प्रभाव क्षेत्र में जा रहे हैं। इससे भारतीय विदेश नीति के लिए चुनौतियां बढ़ती जा रही हैँ। हैरतअंगेज यह है कि इतनी बड़ी चुनौती पर देश में कोई चिंता नजर नहीं आती। भूटान और चीन सीमा विवाद हल करने की तरफ बढ़ रहे हैं, इस बात की अब पुष्टि हो गई है। इस बारे में समझौता होने से पहले संभवत: दोनों देश औपचारिक रूप से राजनयिक संबंध कायम करेंगे। इस हफ्ते भूटान के उप विदेश मंत्री सुन वाइदोंग ने बीजिंग की यात्रा की, जहां भूटान-चीन सीमा के परिसीमन और सीमांकन के लिए बनी संयुक्त तकनीकी समिति की जिम्मेदारियों और कर्त्तव्यों के बारे में समझौते पर दस्तखत किए गए। इसी बीच चीन का ‘अनुसंधान’ जहाज श्रीलंका पहुंच गया है।

पिछले दिनों भारतीय मीडिया में यह खबर आई थी कि भारत ने श्रीलंका सरकार से कहा था कि वह इस जहाज को ना आने दे। इस तरह श्रीलंका ने लगातार दूसरे वर्ष चीनी जहाज के संदर्भ में भारतीय चिंताओं की अनदेखी की है। उधर मालदीव में नव-निर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइजे ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में यह साफ कहा है कि अगले महीने अपने पद की शपथ लेने के बाद भारतीय सुरक्षाकर्मियों को अपने देश से वापस भेजना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता होगी।

मुइजे ने चीन की परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की जमकर तारीफ की और उसमें मालदीव की भागीदारी बढ़ाने का इरादा जताया। नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल अभी कुछ ही समय पहले चीन की यात्रा करके लौटे हैं। उनकी इस यात्रा के दौरान नेपाल में बीआरआई की परियोजनाओं पर अमल संबंधी कई करार हुए। तो यह साफ है कि दक्षिण एशिया में एक के बाद दूसरे देश भारतीय चिंताओं को नजरअंदाज कर चीन के प्रभाव क्षेत्र में जा रहे हैं।

इससे भारतीय विदेश नीति के लिए चुनौतियां बढ़ती जा रही हैँ। हैरतअंगेज यह है कि इतनी बड़ी चुनौती पर देश में कोई चिंता नजर नहीं आती। उलटे सत्ताधारी पार्टी और मेनस्ट्रीम मीडिया दुनिया में भारत के कथित रूप से बढ़ते प्रभाव का कथानक प्रचारित करने में जुटे हुए हैँ। जबकि यह वक्त गहरे आत्म-निरीक्षण और भारतीय रणनीति एवं कूटनीति की प्राथमिकताओं फिर से तय करने का है। इस बात को अवश्य समझा जाना चाहिए कि कोई बड़ा देश दुनिया में प्रभावशाली नहीं हो सकता, अगर पास-पड़ोस में उसका रुतबा स्वाभाविक रूप से स्थापित ना हो।

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