अनिल चन्दोला, देहरादून
अब आयुष चिकित्सा के तहत होने वाला उपचार भी हेल्थ इंश्योरेंस में कवर हो सकेगा। इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (इरडा) ने सभी बीमा कंपनियों को इसके संबंध में गाइडलाइन जारी की है, जिसके बाद कई कंपनियों ने इसकी शुरूआत भी कर दी है। हेल्थ इंश्योरेंस में आयुष चिकित्सा के शामिल होने से लोगों को आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक, यूनानी चिकित्सा, नेचुरोपैथी, योग, सिद्धा आदि का लाभ भी मिल सकेगा। इससे उत्तराखंड जैसे राज्य को बहुत अधिक लाभ होगा, जहां प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में लोग आयुष चिकित्सा का लाभ लेने के लिए आते हैं।
पिछले कुछ समय में पूरी दुनिया में आयुष चिकित्सा की लोकप्रियता में खासी बढ़ोत्तरी हुई है। विशेषकर कोरोना महामारी के बाद लोगों ने स्वस्थ जीवनशैली के लिए आयुष चिकित्सा को अपनाया है। दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग आयुष चिकित्सा का लाभ लेने के लिए भारत के अलग-अलग राज्यों, विशेषकर उत्तराखंड में आते हैं। इसी को देखते हुए कुछ समय पूर्व केंद्र सरकार ने आयुष वीजा की शुरूआत की। इसके तहत विदेशी नागरिकों को आयुष चिकित्सा के लिए विशेष वीजा जारी किया जाता है। आयुष की लोकप्रियता और लाभ को देखते हुए अब आयुष चिकित्सा को हेल्थ इंश्योरेंस में शामिल किया गया है।
उत्तराखंड में पिछले कुछ वर्षों के दौरान बड़ी संख्या में आयुष अस्पताल और वेलनेस सेंटर खुले हैं। राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों और नदियों के किनारे बसे शहरों में ऐसे कई प्रसिद्ध वेलनेस सेंटर हैं, जहां देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं। इसके अलावा आयुष दवाओं के उत्पादन, प्रोसेसिंग और बिक्री से भी बड़ी संख्या में लोग जुड़े हैं। आयुष वीजा और हेल्थ इंश्योरेंस कवरेज से इस सेक्टर को अच्छा-खासा उछाल मिलने की संभावना है।
बेहद लोकप्रिय हैं आयुष के कई उपचार
आयुष पद्धति के तहत कई उपचार खासे प्रसिद्ध हैं। इसमें मुख्य तौर पर पंचकर्म, क्षारसूत्र, लीच थैरेपी, अग्निकर्म, मर्म चिकित्सा, जीवनशैली संबंधी (मधुमेह, थॉयराइड, हाइपरटेंशन) बीमारियों का उपचार, दमा व श्वांस संबंधी बीमारियों का उपचार शामिल है। अन्य पैथियों की तुलना में साइड इफेक्ट कम होने के कारण कई लोग आयुष पद्धति के उपचार को पसंद करते हैं। इसके अलावा कई गंभीर बीमारियों में एलोपैथिक उपचार के साथ आयुष चिकित्सा को भी सहायक चिकित्सा पद्धति के रूप में अपनाया गया है।
आयुष उपचार पद्धति को दुनिया के कई देशों ने मान्यता दी है। बड़ी संख्या में लोग इस पद्धति से उपचार कराते हैं। बीमा कवरेज मिलने के बाद जहां इसके और उन्नत व बेहतर केंद्र स्थापित होंगे, वहीं लोगों को भी बेहतर उपचार मिल सकेगा। लोगों के पास उपचार कराने के लिए ज्यादा विकल्प होंगे। उत्तराखंड जैसे राज्य में, जहां आयुष के क्षेत्र में अपना संभावनाएं हैं, वहां यह बेहद लाभदायक साबित होगा।
प्रो. अरुण कुमार त्रिपाठी, कुलपति, उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय