पुण्यतिथि पर हिमवंत कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल को किया याद, साहित्य में योगदान पर हुई चर्चा

पुण्यतिथि पर हिमवंत कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल को किया याद, साहित्य में योगदान पर हुई चर्चा

देहरादून। पुण्य तिथि के मौके पर बृहस्पतिवार को हिमवंत कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल का भावपूर्ण स्मरण किया गया। इस मौके पर साहित्य में उनके योगदान को लेकर भी चर्चा हुई। वक्ताओं ने स्व. बर्त्वाल की रचनाओं की सराहना करते हुए उन्हें साहित्य संसार का महत्वपूर्ण खजाना बताया।

हिमवंत कवि चन्द्र कुवर बर्तवाल शोध संस्थान सोसाइटी के तत्वावधान में मालती रावत निःशुल्क ऑक्सीजन बैंक के सभागार में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि गिरधर पंडित ने कहा कि 20 अगस्त 1919 को जन्म स्व. बर्त्वाल ने मात्र 28 साल की उम्र में हिंदी साहित्य को अनमोल कविताओं का समृद्ध खजाना दे दिया था। समीक्षक चंद्र कुंवर बर्त्वाल को हिंदी का ‘कालिदास’ मानते हैं। उनकी पुस्तक सम्पूर्ण काव्य ग्रंथ की सह संपादक रही कुसुम रावत ने कहा कि उनकी कविताओं में प्रकृति प्रेम झलकता है। चमोली जनपद के मालकोटी पट्टी के नागपुर गांव में उनका जन्म हुआ। उनके पिता भूपाल सिंह बर्तवाल अध्यापक थे। उनकी शुरुवाती शिक्षा गांव के स्कूल से हुई। उसके बाद पौड़ी के इंटर कॉलेज से उन्होंने 1935 में उन्होंने हाई स्कूल किया।

उन्होंने उच्च शिक्षा लखनऊ और इलाहाबाद में ग्रहण की। 1939 में इलाहाबाद से स्नातक करने के पश्चात लखनऊ विश्वविद्यालय में उन्होंने इतिहास विषय से एमए करने के लिये प्रवेश लिया। इस बीच अचानक उनकी तबीयत खराब हो गई। वह 1941 में अपनी पढ़ाई छोड़कर गांव लौट आए। वह प्रकृति की खूबसूरती को अपनी लेखनी के माध्यम से बयां करते थे। समय साक्ष्य से रानू बिष्ट ने कहा कि जो भी उनके मन में रहता कागज पर कलम की मदद से उकेर देते। कहा जाता है कि वे अपने लिखे काव्य, कविताओं को प्रकाशित करने के लिए भी नहीं देते।

समाजसेवी सुरेंद्र कुमार कहा कि उनके साहित्य पर कई शोध कार्य हो चुके हैं। वह कविताएं लिखकर अपने पास रख लेते या दोस्तों को भेज देते। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि इतने महान साहित्यकार अपने जीवनकाल में उन रचनाओं का सुव्यवस्थित रूप से प्रकाशन नहीं कर पाए। उनके मित्र पं0 शम्भू प्रसाद बहुगुणा को उनकी रचनाएं सुव्यवस्थित करने का श्रेय जाता है। उन्होंने ही उनकी 350 कविताओं का संग्रह संपादित किया । डा0 उमाशंकर सतीश ने भी उनकी 269 कविताओं व गीतों का प्रकाशन किया था।

शोध संस्थान के सचिव रहे डॉ. योगंबर सिंह बर्तवाल भी उनकी रचनाओं को सामने लाने में सहयोग करते रहे। 14 सितम्बर 1947 को 28 साल की उम्र में प्रकृति के चितेरे कवि इस दुनिया को अलविदा कह गए। चंद्रकुंवर बर्त्वाल ने बेहद ही कम उम्र में अपनी लेखनी के माध्यम से वो कर दिखया जिसे लिखने, बयां करने के लिए किसी साहित्यकार को दशकों का अनुभव चाहिए होता है। उन्होंने एक हज़ार अनमोल कविताएं, 24 कहानियां, एकांकी और बाल साहित्य का अनमोल खजाना हिन्दी साहित्य को दिया ।

मृत्यु पर आत्मीय ढंग से और विस्तार से लिखने वाले चंद्रकुंवर बर्त्वाल हिंदी के पहले कवि थे। इस अवसर पर शंकर चंद रमोला,  डा मीनाक्षी रावत,  प्रभा सजवाण,  प्रमेन्द्र बर्तवाल, सतेंद्र बर्तवाल, प्रकाश थपलियाल,  डॉ. गोगिल,  डॉ.गुणानंद बलोनी, सत्य प्रकाश चौहान, यशवीर चौहान, मानवेंद्र बर्तवाल, ललित मोहन लखेड़ा, शिवानी, मोहन सिंह नेगी, अध्यक्ष मनोहर सिंह रावत समेत अन्य मौजूद रहे।

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