खेलों से क्यों खफा मीडिया ?

खेलों से क्यों खफा मीडिया ?

राजेन्द्र सजवान
दिन-रात नेताओं, सांसदों और दलगत राजनीति का भोंपू बजाने वाले टीवी चैनल, समाचार पत्रों और सोशल मीडिया को क्रिकेट के अलावा कोई दूसरा खेल और खिलाड़ी क्यों नजर नहीं आते?अपने खिलाडिय़ों की पूरी तरह अनदेखी की जा रही है। खिलाडिय़ों को प्रोत्साहन नहीं मिलेगा और उनकी उपलब्धियों का बखान नहीं किया जाएगा, तो क्या हम खेलों में बड़ी ताकत बन पाएंगे?

चूंकि देश को खेल महाशक्ति बनना है इसलिए खिलाडिय़ों को ग्रासरूट स्तर से विकसित किया जा रहा है। उन्हें स्कूल स्तर से प्रोत्साहन दिया जा रहा है। सरकारें अपने खजाने से उन पर भरपूर खर्चा कर रही हैं और सफल खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय खेल अवार्ड बांटे जा रहे हैं। लेकिन खेलों को प्रोत्साहन देने के मामले में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ लगभग खामोश सा है। ऐसा क्यों है? यह सवाल कभी कभार पूछा तो जाता है परंतु गंभीरता की कमी के कारण कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है।

‘जंगल में मोर नाचा किसने देखा’, इस कहावत पर भारतीय खेलों के प्रति मीडिया की गंभीरता को परखा जाए तो, सिर्फ क्रिकेट ही ऐसा खेल है, जिस पर मीडिया मेहरबान है। खासकर, 1983 के विश्व कप में मिली खिताबी जीत के बाद से भारतीय मीडिया क्रिकेट का होकर रह गया।जहां तक बाकी खेलों की बात है, मीडिया को अन्य खेलों की याद तब आती है जब कोई खिलाड़ी ओलम्पिक और एशियाड में बड़ा करिश्मा करता है या फिर विश्व स्तर पर रिकॉर्ड तोड़ता है। लेकिन क्रिकेट में टेस्ट, एकदिनी मुकाबलों, रणजी ट्रॉफी और स्थानीय एवं गली-कूचे के आयोजनों पर भारतीय प्रचार माध्यम हमेशा से मेहरबान रहे हैं।

दिन-रात नेताओं, सांसदों और दलगत राजनीति का भोंपू बजाने वाले टीवी चैनल, समाचार पत्रों और सोशल मीडिया को क्रिकेट के अलावा कोई दूसरा खेल और खिलाड़ी क्यों नजर नहीं आते? क्यों बाकी खेलों को अखबार के खेल पेज पर चार लाइनों के बराबर जगह  नहीं मिल पाती? खासकर, देश की राजधानी के समाचार राष्ट्रीय और स्थानीय खेल आयोजनों को जगह नहीं देते। ऐसा क्यों? क्या ऐसे भारत खेल महाशक्ति बन पाएगा? हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबॉल, कबड्डी, बास्केटबॉल, मुक्केबाजी, कुश्ती, तैराकी, एथलेटिक्स, बैडमिंटन और तमाम खेलों से जुड़ी खबरें राष्ट्रीय समाचार पत्रों से गायब  हो रही हैं। चूंकि खेल खबरों को अखबार में जगह नहीं मिल पाती है इसलिए ज्यादातर खेल आयोजक और खेल संघ मीडिया से नाराज है।

क्रिकेट के अलावा, यूरोप और लैटिन अमेरिकी फुटबॉल, टेनिस और बास्केटबॉल की खबरें भारतीय मीडिया की पसंद है। अपने खिलाडिय़ों की पूरी तरह अनदेखी की जा रही है। क्या ऐसे भारत खेल महाशक्ति बन पाएगा? खिलाडिय़ों को प्रोत्साहन नहीं मिलेगा और उनकी उपलब्धियों का बखान नहीं किया जाएगा, तो क्या हम खेलों में बड़ी ताकत बन पाएंगे?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top