ग्राउंड रिपोर्टः टिहरी के रण में महारानी, गुनसोला और बॉबी के बीच त्रिकोणीय हुआ मुकाबला

ग्राउंड रिपोर्टः टिहरी के रण में महारानी, गुनसोला और बॉबी के बीच त्रिकोणीय हुआ मुकाबला

अनिल चन्दोला, टिहरी/देहरादून। तीन जिलों में फैली टिहरी लोकसभा का चुनाव इस बार खासा दिलचस्प हो गया है। भाजपा प्रत्याशी माला राज्यलक्ष्मी शाह यहां से जीत की हैट्रिक लगा चुकी हैं। वह लगातार चौथी बार यहां से लोकसभा पहुंचने का प्रयास कर रही हैं। वहीं, कांग्रेस ने अपने पूर्व विधायक जोत सिंह गुनसोला पर भरोसा जताया है, जो पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। इन दोनों के अलावा इस सीट पर सबसे ज्यादा चर्चा जिस नाम की है, वह निर्दलीय बॉबी पंवार हैं। बॉबी ने देहरादून, उत्तरकाशी और टिहरी के सीमांत क्षेत्रों में अपनी मजबूत पकड़ का प्रदर्शन किया है। युवाओं की बड़ी टीम के भरोसे उन्होंने न सिर्फ मुकाबला त्रिकोणीय बनाया है बल्कि भाजपा और कांग्रेस दोनों के माथे पर चिंता की लकीर भी खींच दी है।

इस लोकसभा सीट में देहरादून की सात, टिहरी की चार और उत्तरकाशी की तीन विधानसभा सीटें शामिल हैं। देहरादून जिले की विकासनगर, सहसपुर, रायपुर, राजपुर रोड, कैंट, मसूरी, टिहरी जिले की धनोल्टी, टिहरी, नरेंद्रनगर और उत्तरकाशी जिले की पुरोला व गंगोत्री में भाजपा के विधायक हैं। चकराता व प्रतापनगर में कांग्रेस और यमुनोत्री में निर्दलीय विधायक हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो इस लोकसभा सीट पर भाजपा का दबदबा साफ नजर आता है। लोक सभा के पिछले दो चुनाव और एक उपचुनाव में यह दिखा भी है। इसे टिहरी राजपरिवार की परंपरागत सीट माना जाता रहा है। यहां मतदाताओं ने अधिकांश चुनावों में पार्टी के बजाय राजपरिवार को तवज्जो दी है। राजपरिवार के सदस्य जिस पार्टी से लड़े, उन्हें वहां से जीत हासिल करने में कामयाबी मिली।

भाजपा को मोदी की गारंटी पर भरोसा

भाजपा इस सीट पर पूरी तरह मोदी की गारंटी के भरोसे हैं। मजबूत पार्टी संगठन और मौजूद संसाधनों का भी पार्टी को लाभ मिलेगा। महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह स्थानीय मुद्दों के बजाय मोदी के चेहरे, पिछले दो कार्यकाल के विकास कार्यों को लेकर जनता के बीच हैं। पार्टी भी स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा जोर नहीं दे रही है। इस लोकसभा सीट में राजधानी क्षेत्र भी शामिल है। यही कारण है कि यह सीट पार्टी की प्रतिष्ठा से भी जुड़ी है। भाजपा के कई बड़े नेता इस पर चुनाव प्रचार कर चुके हैं। अगले कुछ दिनों में कई अन्य बड़े नेताओं का भी जनसभा और जनसंपर्क करने का कार्यक्रम है।

कांग्रेस का जोर कैडर वोट को छिटकने से बचाने पर

कांग्रेस भले ही पिछले लगातार तीन चुनाव (एक उपचुनाव समेत) में इस सीट को गंवा चुकी है लेकिन उसके लिए राहत की बात यह है कि कैडर लगातार पार्टी के साथ जुड़ा हुआ है। 2019 में बड़ी हार के बावजूद पार्टी का कैडर वोट बहुत ज्यादा नहीं छिटका है। पार्टी के लिए इस चुनाव में सबसे बड़ी चुनौती इस कैडर वोट को बिखरने से बचाने की होगी। 2019 में कांग्रेस प्रत्याशी प्रीतम सिंह को करीब 30 फीसदी वोट मिले थे। जोत सिंह गुनसोला इन वोटरों को बचाए रखने के साथ ही नए वोटरों को जोड़ने पर जोर दे रहे हैं। पार्टी अपने प्रचार के दौरान मौजूदा सांसद के क्षेत्र में सक्रिय न रहने के मुद्दे को प्रमुखता से उठा रही है।

युवाओं के दम पर बाजी पलटने में जुटे बॉबी

निर्दलीय बॉबी पंवार इस सीट पर एक्स फैक्टर बनकर उभरे हैं। नामांकन के बाद से अब तक बॉबी ने इस क्षेत्र में अपना जनाधार बढ़ाया है। इससे भाजपा और कांग्रेस दोनों की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। बॉबी के साथ मुख्य तौर पर युवा और तीनों जिलों की सीमांत सीटों के मतदाता जुड़े हुए हैं। बॉबी पूरी तरह स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ रहे हैं, यही कारण है कि बड़ी संख्या में वोटर उनसे जुड़ रहे हैं। बॉबी राज्य सरकार की भर्तियों में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, पलायन, विधानसभा भर्ती घोटाला, अंकिता भंडारी हत्याकांड जैसे मुद्दों को लेकर लोगों के बीच लेकर जा रहे हैं, जिसे मतदाता हाथोंहाथ ले रहे हैं।

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